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उसका दोष क्या है भाग - 8 15 पार्ट सीरीज

            उसका दोष क्या है भाग 8 15 पार्ट सीरीज 
            कहानी अब तक
    विद्या रमेश के दिए हुए उपहार को संभाल कर रखती है l
                    अब आगे
  दशहरा आ गया। विद्या अपने परिवार सहित दशहरा का मेला देखने रांची गई थी। उससे एक दिन पहले रांची घूम कर बहुत से पण्डाल भी देखे थे। पण्डाल और उसमें में सजी हुई मूर्त्तियाँ अत्यंत खूबसूरत थीं। मूर्त्तियों की बनावट और सजावट जितनी खूबसूरती से की गई थी,पण्डाल भी उतनी ही खूबसूरती से सजाया गया था। पूरी रात वे घूमते रहे,प्रातः घर आए। घर आने के बाद विद्या सो गई थी l और आज दशहरा मेला जिसमें मुख्य रूप से रावण दहन होता है,देखने विद्या अपने पूरे परिवार सहित पुनः राँची आई थी। रावण कुम्भकरण एवँ मेघनाद का विशाल पुतला दहन के लिए मोराबादी मैदान में लगा हुआ था। इन लोगों ने भी एक सही जगह चुनकर जहां से साफ-साफ दिखाई दे,और दूरी भी  इतनी हो कि पुतला दहन के समय सुरक्षित रहें; उस स्थान पर खड़े थे।
  रावण कुंभकरण और मेघनाद के पुतलों को क्यों जलाया जाता है दीदी।
   वीनू के द्वारा पूछे जाने पर भाइयों ने तो बात को टाल दिया। लेकिन विद्या ने कुछ स्कूल में पढ़ी गई, शिक्षकों से सुनी गई,और रमा के द्वारा भी सुनी गई बातों के आधार पर उसे रामायण की संक्षिप्त कथा सुना कर रावण दहन का औचित्य बतलाते हुए कुंभकरण और मेघनाद के भी सीता हरण के पाप में रावण के सहयोगी होने के करण दंड मिलने की बात बताई।
 वीनू प्रत्येक वर्ष रावण,कुंभकरण और विभीषण का पुतला बनाकर इस प्रकार दहन करके संदेश दिया जाता है कि पापी कभी बचता नहीं! चाहे देर से ही हो, लेकिन उसके पाप का अंत अवश्य होता है!
   वीनू कुछ समझी और कुछ नहीं भी समझी, उसका ध्यान तो वहां लगे हुए मेला,विशाल,भीड़ ठेले,खोमचे,और रेहड़ियों पर जमी हुई थी। जहां कई प्रकार के खिलौने, श्रृंगार सामग्री एवं तरह-तरह की खाद्य सामग्रियां स्टॉल में सजाकर रखी थीं। लोग रावण-दहन की प्रतीक्षा करते हुए उन सामग्रियों का क्रय करने में भी लगे थे । 
    विद्या और वीनू ने भी अपने भाइयों के साथ खूब खाया और मस्ती किया। रावण दहन देखने के बाद रात को घर लौटे। उन्होंने मेला में इतना कुछ खा लिया था कि रात में खाने की इच्छा किसी को नहीं थी। विद्या और वीनू दोनों सोने के लिए कमरे में आए।
  वीनू -  " कितना मजा आया न दीदी"।
  विद्या -  "हां मजा तो बहुत आया"।
  वीनू -  "दीदी हम लोग भी दुर्गा पूजा क्यों नहीं करते हैं ? कितना अच्छा पंडाल सजा था,मेरी बहुत सी सहेलियों के घर में दुर्गा पूजा होती है। वे नौ दिन तक नवरात्रि का अनुष्ठान करते हैं। हमारे यहां क्यों नहीं होती"?
   विद्या -  " हम लोग सरना धर्म मानते हैं,ग्राम देवता की पूजा करते हैं,सिरासीता की पूजा करते हैं, लेकिन ऐसा नहीं है कि हम दुर्गा मां को नहीं मानते। हम हिंदुओं के भी सभी देवी-देवता को मानते हैं, और उन पर श्रद्धा भी रखते हैं। तभी तो हम मंदिरों में भी जाते हैं पूजा अर्चना करने। हम सरना धर्मावलंबी हैं,हमारी हर पूजा सामूहिक होती है। अपने घर में अलग पूजा नहीं करते,इसलिए हम लोग घर में नवरात्रि नहीं करते। परन्तु मेरी समझ में नवरात्रि करने में कोई बुराई नहीं है। हम पूजा सामूहिक पूजा स्थल पर कर सकते हैं। मैं तो सोचती हूं अगली बार से मैं भी नवरात्रि करूंगी। नौ दिन फलाहार में रहकर पूजा करूंगी,प्रतिदिन दुर्गा पूजा स्थल पर जाकर प्रार्थना करूंगी,वहां पाठ करूंगी"|
   वीनू -    "वाह दीदी तब तो मजा आ जाएगा। तुम करना फिर उसके बाद मैं भी करूंगी। यदि तुम करने लगोगी तो माँ बाबा मुझे कभी मना नहीं करेंगे"।
यही बातें करते उन दोनों को नींद आ गई। सुबह देर से विद्या की नींद खुली। उठ कर जल्दी-जल्दी तैयार हुई। उसे तैयार होते देख माँ ने कहा - 
  "इतनी जल्दी क्यों तैयार हो रही है,अभी तो कॉलेज बंद है"।
  विद्या   -   "मां पढ़ाई बहुत करना है और लाइब्रेरी का किताब भी लौटाना है,इसलिए लाइब्रेरी जा रही हूं। किताब भी लौटा दूंगी,कुछ नई किताबें लेकर  आऊंगी,और वहां थोड़ी देर बैठ कर पढ़ाई भी कर लूंगी। कॉलेज बंद होने के बाद एक दिन भी लाइब्रेरी नहीं गई। माँ ने पढ़ाई की बात सुनकर कुछ नहीं कहा और वो लाइब्रेरी की किताबें लेकर निकली। आज उसने रमेश का दिया हुआ उपहार धारण किया था। सूट् उस पर बहुत खिल रहा था। निखर आयी थी विद्या उस सूट में।
  उसे देखते ही वीनू ने कहा -   "वाओ दीदी कितना सुंदर सूट ली हो तुम अपने लिए। तुम में बहुत सुंदर लग रहा है"।
  विद्या -   "तेरा भी ड्रेस तो तुझ में बहुत सुंदर लग रहा था"।
   वीनू -   "हां दीदी तुम्हारी पसंद बहुत अच्छी है, अब जब भी मुझे कुछ लेना होगा तुम ही खरीदना मेरे लिए"।
      विद्या मुस्कुरा दी और बाहर निकल गई। घर से निकलकर वह ऑटो पकड़ने के लिए सड़क पर आई,इंतजार करने के बदले थोड़ा आगे बढ़ गई तभी उसके कानों में चिर परिचित हॉर्न की आवाज सुनाई दी। पलट कर देखा रमेश था। विद्या ने आगे पीछे देखा और किसीको देखता न पाकर उसकी बाइक पे बैठ गई। रमेश ने बाइक आगे बढ़ा दी।
    रमेश -  "बहुत देर कर दी आने में मैं कब से तुम्हारा इंतजार कर रहा था"।
  विद्या -   "मैंने बहुत देर तो नहीं की,हाँ थोड़ी सी तो देर हुई है। कल दशहरा मेला देख कर आई,परसों भी रात भर घूमी थी तो बहुत थक गई थी। सुबह देर से नींद खुली। फिर भी मैंने बहुत देर नहीं किया"। 
रमेश और विद्या दोनों वहां से रॉक गार्डन जाते हैं। रॉक गार्डन में दोनों एक दूसरे के हाथों में हाथ डाले घूमते रहे और बातें करते रहे। कुछ देर में हीअपने पूरे जीवन भर की योजना बना ली दोनों ने । 
वहां से निकल वे लाइब्रेरी भी गये। लाइब्रेरी में पहले की किताब वापस कर दो नई किताबें लेकर वापस आ गये। आज विद्या को लाइब्रेरी में बैठकर पढ़ने का भी समय नहीं मिला। पूरा दिन उसने रमेश के साथ बिताया। वापसी में रमेश ने उसे उसके घर के निकट छोड़ दिया,अगले दिन आने का वादा लेकर। 
  विद्या और रमेश प्रतिदिन मिलते रहे और उनका प्यार परवान चढ़ता रहा। विद्या के घर में किसी को पता नहीं था रमा अभी नहीं आयी है,सभी सोच रहे थे विद्या और रमा अवकाश का उपयोग एक साथ बैठकर पढ़ाई करने में करती हैं। उन्हें बिल्कुल नहीं पता चला,अवकाश का उपयोग विद्या किस प्रकार कर रही है। कॉलेज खुला और विद्या अपने कॉलेज जाने लगी थी। रमेश के विवाह की बातचीत उनके घर में चल रही थी। इसी बीच रमा के भैया मोहन की शादी तय हो गई। शादी में विद्या के पूरे परिवार को निमंत्रण मिला था। रमा ने विद्या को शादी के एक सप्ताह पहले ही अपने घर में रहने आ जाने के लिए उसके माता-पिता से अनुमति ले ली थी। विद्या रमा के घर शादी से एक सप्ताह पूर्व ही आ गई। दोनों ने मिलकर शादी में बहुत मस्ती किया। शादी में रमेश अवसर निकालकर विद्या से चुहलबाजी करता रहा,अपनी शादी के सपने दिखाता रहा और दोनों प्रेम के झूले में सवार भविष्य के सपने सँजोते रहे। शादी के बाद भी रमा एक सप्ताह विद्या के घर रही। बीच-बीच में उसकी बहन भी आती लेकिन वह रुकती नहीं,चली जाती थी। विद्या के माता पिता और भाई भी शादी में सम्मिलित हुए। इस विवाह के बाद रमेश के विवाह की बहुत तेजी से चर्चा चल रही थी।
   रमेश ने विद्या से उसके अपने घर में शादी के लिए बात करने के लिए कहा।
  विद्या  -   "न बाबा न!मुझे हिम्मत नहीं है! तुम स्वयं आकर मेरे बाबा से मुझे मांग लो। मुझे विश्वास है यदि तुम आओगे मेरे बाबा मना नहीं करेंगे। क्योंकि हमारे यहां बंदिश नहीं है अपनी जाति में ही शादी करें। परंतु तुम्हें पहल करनी होगी,क्योंकि हमारे यहां रिवाज है लड़के वाले आते हैं लड़की का हाथ मांगने। तो मैं कैसे कह सकती हूं उन्हें तुम्हारे यहां जाने के लिए।
  रमेश  -  "हमारे यहां तो लड़की वाले आते हैं"।
   विद्या  -   " यह मैं नहीं जानती लेकिन मैं उन्हें तुम्हारे यहां जाने के लिए नहीं कह सकती। हां तुम यदि मेरा हाथ मांग लो आकर,उसके बाद तुम्हारे माता-पिता से बात करने मेरे परिवार वाले अवश्य जाएंगे"।
रमेश अब चिंता में पड़ गया। वह अपने घर में चाह कर भी विद्या के विषय में किसी को बतलाने की हिम्मत नहीं जुटा सक रहा था।
   भैया के विवाह में रमा ने भी विद्या और रमेश की निकटता महसूस की थी। अब उसने भैया की बात पर अमल करते हुए विद्या से बात करने का निश्चय किया। एक दिन कॉलेज पहुंचने के बाद रमा ने विद्या का हाथ पकड़कर कैंपस में एक पेड़ के नीचे बैठा लिया और कहा   -
     "विद्या मुझे तुमसे कुछ बातें करनी है"।
  विद्या -  "चलो क्लास में बैठकर ही कर लेंगे। अभी ममता मैडम का क्लास है"।
  रमा -  "ममता मैडम की क्लास छोड़ो आज,तुमसे बात करना मुझे अधिक आवश्यक लग रहा है"।
  विद्या  -   "ऐसी कौन सी बात है जो करने के लिए तुम क्लास छोड़ रही हो"।
  रमा -   "देख विद्या तू मेरी बहुत प्यारी सखी है,मेरे घर वाले भी तुझे बहुत चाहते हैं। परंतु इतना जान ले मेरी सखी के रूप में तो तुम्हें सब का प्यार मिलेगा, किसी अन्य रूप में वे तुझे कभी स्वीकार नहीं करेंगे"।
  विद्या -   "कहना क्या चाहती हो तुम"।
   रमा  -  "क्या तुम नहीं समझ रही हो ? जहां तक मेरी समझ में आया है तुममें और रमेश भैया में बहुत निकटता मैंने देखा है। क्या यह निकटता एक सहेली के भाई के साथ होने वाला संबंध ही था या उसमें दूसरा भाव भी है। मुझे ऐसा लगा कि तुम उन्हें सिर्फ अपनी सहेली के भाई के रूप में नहीं स्वीकार कर रही,जैसे तुमने मोहन भैया को किया। रमेश भैया को तुम किसी और दृष्टि से भी देख रही हो,क्या मैं गलत हूं"?
  विद्या थोड़ी देर खामोश रहती है,फिर उसने रमा के हाथ अपने दोनों हाथों में ले लिया और कहा -  
  "नहीं रमा तुम गलत नहीं हो,बिल्कुल सही हो। मैं सचमुच तुम्हारे रमेश भैया को किसी और दृष्टि से देखती हूं। हम एक दूसरे को बहुत प्रेम करते हैं और हमने विवाह करने का भी फैसला ले लिया है"।
   रमा आश्चर्यचकित सी विद्या की  स्वीकारोक्ति सुन रही थी। उसे आज भैया की बातें याद आ रही थी, और उसे अफसोस हो रहा था कि उसने भैया की बात मानकर उसी समय विद्या को सावधान क्यों नहीं किया। रमा जानती थी रमेश भैया की शादी लगभग तय हो चुकी है। रमेश भैया ने विद्या के विषय में अपने घर में किसी को कुछ नहीं बताया है। यदि बताया होता तो रमा को अवश्य पता होता। उसका दिल विद्या के लिए सहानुभूति से भर उठा। उसने विद्या से कहा   -  "क्या तुम निश्चित हो रमेश भैया तुमसे शादी करेंगे"।
   विद्या -  "हां वह मेरे सिवा किसी और को पत्नी नहीं मान सकते। उन्होंने मुझसे कहा भी था मैं अपने मां बाबा को अपने प्रेम की बात बता कर उनके घर रिश्ता लेकर भेजूं"।
  रमा  -  "फिर क्या हुआ तुम्हारे घर से तो कोई नहीं आए थे"।
   विद्या -  "कैसे आते मैंने कहा ही नहीं। तुम्हें पता है हमारे यहां रिवाज है लड़के वाले लड़की का हाथ मांगने आते हैं। तो अपने मां बाबा को कैसे भेजती उनके घर,इसलिए मैंने रमेश को कहा वह स्वयं आकर मेरे मां बाबा से मेरा हाथ मांगे। तब हमारे प्रेम की बात जानकर और मेरी भी इच्छा देखते हुए मेरे मां बाबा उसके घर चले जाएंगे रिश्ते की बात करने। परंतु प्रारंभ तो रमेश को ही करना होगा"।
   रमा  -  " क्या रमेश भैया गए तुम्हारे घर?
  विद्या  -   "नहीं  वो नहीं आए हैं अब तक"।
     रमा -   "देख विद्या ऐसा न हो कि रमेश भैया की शादी हो जाए और तुम लोग जीवन भर एक दूसरे की प्रतीक्षा करते रह जाओ। इसलिए अभी भी समय है,या तो अपने मां बाबा को भेजो। यदि उन्हें नहीं भेज सकती,तो फिर रमेश भैया पर दबाव डालो,अपने प्यार को स्वीकार कर तुम्हें अपने घर लाने का।अथवा तुम स्वयं आगे बढ़कर बात स्पष्ट करो। अभी आगे नहीं बढ़ोगी,कुछ नहीं बोलोगी तो तुम्हें सिर्फ पछतावा ही मिलेगा"।
  इसके बाद उनमें और कोई बात नहीं हुई। दो क्लास ही किया और घर आ गए।  रमा को सबसे अधिक अपने आप पर क्रोध आ रहा था। भैया ने उसे कितना सही कहा था,परंतु वही नहीं समझी थी। उसे आश्चर्य हुआ यह दोनों साथ ही रहती हैं, फिर इन दोनों के बीच इतनी बातें कब हुई होगी जो रमा को पता ही नहीं चला। उसने पूछ ही तो दिया।
  रमा -    "विद्या हम दोनों सदा साथ रहती थीं,मैंने तो कभी रमेश भैया को तुमसे इतना बोलते-मिलते देखा ही नहीं,फिर बात इतनी आगे कैसे बढ़ गई"।
   और विद्या ने उसे सारी बातें सच-सच बता दी। रमा का सिर चकराने लगा। उसकी अनुपस्थिति में इतना कुछ हो गया। उसकी भोली भाली मासूम सखी घर वालों से झूठ बोलकर प्रेम की पींगे बढ़ाती रही,और उसके घर वालों को भी कुछ भी पता नहीं चला।  कैसे हैं उसके घर वाले! छुट्टियों में बेटी लाइब्रेरी के नाम पर रोज घर से निकल कर दिन भर बाहर रहती थी,और घर वालों को जरा भी संदेह नहीं हुआ । रमेश भैया के दिए उपहारों को विद्या अपने प्रयोग में लाती रही और उसके घर वालों ने जरा भी आपत्ति नहीं की। क्या उन्हें कुछ भी पता नहीं चला ?
  घर आने के बाद रमा ने रमेश भैया को घेरा और उन्हें बहुत खरी-खोटी सुनाई,और कहा  -  
   "आपने वचन दिया है मेरी सहेली को विवाह का, उसे पूरा कीजिए। आप उससे विवाह कीजिए"।
  रमेश सर झुकाए उसकी बात सुनता रहा । 
                 कथा जारी है।
                                               क्रमशः
          निर्मला कर्ण

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2 Comments

Abhinav ji

04-Jun-2023 09:07 AM

Very nice 👍

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Varsha_Upadhyay

04-Jun-2023 07:20 AM

शानदार भाग

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